मेरे बदन में थी तिरी ख़ुशबू-ए-पैरहन

मेरे बदन में थी तिरी ख़ुशबू-ए-पैरहन

शब भर मिरे वजूद में महका तिरा बदन

हूँ अपने ही हुजूम-ए-तमन्ना में अजनबी

मैं अपने ही दयार-ए-नफ़स में जिला-वतन

सब पत्थरों पे नाम लिखे थे रफ़ीक़ों के

हर ज़ख़्म-ए-सर है संग-ए-मलामत पे ख़ंदा-ज़न

अब दश्त-ए-बे-अमाँ ही में शायद मिले पनाह

घर की खुली फ़ज़ा में तो बढ़ने लगी घुटन

हर आदमी है पैकर-ए-फ़रियाद इन दिनों

हर शख़्स के बदन पे है काग़ज़ का पैरहन

ख़ुश-फ़हम हैं कि सिर्फ़ रिवायत परस्त हैं

ख़ुश-फ़िक्र थे कि ले उड़े तारीख़ का कफ़न

इस दौर में यहाँ भी फ़िलिस्तीन की तरह

कुछ लोग बे-ज़मीं हुए कुछ लोग बे-वतन

मिस्ल-ए-सबा कोई इधर आया उधर गया

घर में बसी हुई है मगर बू-ए-पैरहन

'सरशार' मैं ने इश्क़ के मअनी बदल दिए

इस आशिक़ी में पहले न था वस्ल का चलन

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In Hindi By Famous Poet Sarshar Siddiqui. is written by Sarshar Siddiqui. Complete Poem in Hindi by Sarshar Siddiqui. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.