मैं ने इबादतों को मोहब्बत बना दिया
आँखें बुतों के साथ रहीं दिल ख़ुदा के साथ
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ख़ल्वत-ए-ज़ात है और अंजुमन-आराई है
मिरी तलब में तकल्लुफ़ भी इंकिसार भी था
'सरशार' मैं ने इश्क़ के मअ'नी बदल दिए
नींद टूटी है तो एहसास-ए-ज़ियाँ भी जागा
ज़र्रा
उजड़े हैं कई शहर, तो ये शहर बसा है
ना-मुस्तजाब इतनी दुआएँ हुईं कि फिर
मेरे बदन में थी तिरी ख़ुशबू-ए-पैरहन
इक कार-ए-मुहाल कर रहा हूँ
क्या हुआ हम पे जो इस बज़्म में इल्ज़ाम रहे
इश्क़ तक अपनी दस्तरस भी नहीं