अपने अपने घर जा कर सुख की नींद सो जाएँ
तू नहीं ख़सारे में मैं नहीं ख़सारे में
Anwar Masood
Allama Iqbal
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Gulzar
Wasi Shah
Habib Jalib
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Jaun Eliya
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जंगल में कभी जो घर बनाऊँ
वो मेरे सामने मल्बूस क्या बदलने लगा
किताब-ए-सब्ज़ ओ दर-ए-दास्तान बंद किए
ये जो फूट बहा है दरिया फिर नहीं होगा
गदा-ए-शहर-ए-आइंदा तही-कासा मिलेगा
सुब्ह के शहर में इक शोर है शादाबी का
आँखों में दमक उट्ठी है तस्वीर-ए-दर-ओ-बाम
सुब्ह के शोर में नामों की फ़रावानी में
हवा ओ अब्र को आसूदा-ए-मफ़्हूम कर देखूँ
जब शाम हुई मैं ने क़दम घर से निकाला
इक रोज़ मैं भी बाग़-ए-अदन को निकल गया
शहज़ादी तुझे कौन बताए तेरे चराग़-कदे तक