बदन से रूह रुख़्सत हो रही है

बदन से रूह रुख़्सत हो रही है

मुकम्मल क़ैद ग़ुर्बत हो रही है

मैं ख़ुद तर्क-ए-तअल्लुक़ पर हूँ मजबूर

कुछ ऐसी ही तबीअत हो रही है

जफ़ा उन की दिल-ए-ज़ूद-आश्ना पर

ब-मिक़दार-ए-मोहब्बत हो रही है

ख़ुदा से मिल गया है हुस्न-ए-काफ़िर

ख़ुदाई पर हुकूमत हो रही है

नहीं तंहाई-ए-ज़िंदाँ मुकम्मल

मुझे साये से वहशत हो रही है

ये तुम हँस हँस के बातें कर रहे हो

कि तक़्सीम-ए-जराहत हो रही है

अगर मशरब नहीं बदला है 'सीमाब'

तो क्यूँ तज्दीद-ए-बैअत हो रही है

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In Hindi By Famous Poet Seemab Akbarabadi. is written by Seemab Akbarabadi. Complete Poem in Hindi by Seemab Akbarabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.