ऐ शौक़ पता कुछ तू ही बता अब तक ये करिश्मा कुछ न खुला
हम में है दिल-ए-बेताब निहाँ या आप दिल-ए-बेताब हैं हम
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था अजल का मैं अजल का हो गया
तिरा आस्ताँ जो न मिल सका तिरी रहगुज़र की ज़मीं सही
हज़ार हैफ़ छुटा साथ हम-नशीनों का
क्यूँ-कर न रहे ग़म-ए-निहानी तेरा
सौ तरह का मेरे लिए सामान क्या
ढूँडोगे अगर मुल्कों मुल्कों मिलने के नहीं नायाब हैं हम
तलब करें भी तो क्या शय तलब करें ऐ 'शाद'
अख़्लाक़ से जहल इल्म-ओ-फ़न से ग़ाफ़िल
जिए जाएँगे हम भी लब पे दम जब तक नहीं आता
अर्बाब-ए-क़ुयूद तुझ को क्या देखेंगे
क्या मुफ़्त ज़ाहिदों ने इल्ज़ाम लिया
भरे हों आँख में आँसू ख़मीदा गर्दन हो