भरे हों आँख में आँसू ख़मीदा गर्दन हो
तो ख़ामुशी को भी इज़हार-ए-मुद्दआ कहिए
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तलब करें भी तो क्या शय तलब करें ऐ 'शाद'
क्या मुफ़्त ज़ाहिदों ने इल्ज़ाम लिया
चमन में जा के हम ने ग़ौर से औराक़-ए-गुल देखे
सियाहकार सियह-रू ख़ता-शिआर आया
ढूँडोगे अगर मुल्कों मुल्कों मिलने के नहीं नायाब हैं हम
अब इंतिहा का तिरे ज़िक्र में असर आया
चालाक हैं सब के सब बढ़ते जाते हैं
हज़ार शुक्र मैं तेरे सिवा किसी का नहीं
नज़र की बर्छियाँ जो सह सके सीना उसी का है
क्या फ़क़त तालिब-ए-दीदार था मूसा तेरा
बाज़ अहल-ए-वतन से अब भी दुख पाता हूँ
सौ तरह का मेरे लिए सामान क्या