जिस दिल में ग़ुबार हो वो दिल साफ़ कहाँ
फिर ख़ल्क़ कहाँ वक़ार-ए-अल्ताफ़ कहाँ
जिस क़ौम में आ गया तअस्सुब का क़दम
उस क़ौम में ऐ 'शाद' फिर इंसाफ़ कहाँ
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कहते हैं अहल-ए-होश जब अफ़्साना आप का
अब भी इक उम्र पे जीने का न अंदाज़ आया
दिल-ए-मुज़्तर से पूछ ऐ रौनक़-ए-बज़्म
इज़हार-ए-मुद्दआ का इरादा था आज कुछ
परवानों का तो हश्र जो होना था हो चुका
अख़्लाक़ से जहल इल्म-ओ-फ़न से ग़ाफ़िल
भरे हों आँख में आँसू ख़मीदा गर्दन हो
सुनी हिकायत-ए-हस्ती तो दरमियाँ से सुनी
तिरा आस्ताँ जो न मिल सका तिरी रहगुज़र की ज़मीं सही
किस बुरी साअत से ख़त ले कर गया
अगर मरते हुए लब पर न तेरा नाम आएगा
सौ तरह का मेरे लिए सामान क्या