जो चाहिए देखना न देखा मैं ने
हर शय पे किया है ग़ौर क्या क्या मैं ने
औरों का समझना तो बहुत मुश्किल है
ख़ुद क्या हूँ इसी को नहीं समझा मैं ने
Habib Jalib
Wasi Shah
Rahat Indori
Parveen Shakir
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Faiz Ahmad Faiz
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Mohsin Naqvi
Gulzar
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ग़म-ए-फ़िराक़ मय ओ जाम का ख़याल आया
सियाहकार सियह-रू ख़ता-शिआर आया
दिल मोरिद-ए-ईज़ा-ओ-बला होता है
क्या फ़क़त तालिब-ए-दीदार था मूसा तेरा
फ़क़त शोर-ए-दिल-ए-पुर-आरज़ू था
हज़ार शुक्र मैं तेरे सिवा किसी का नहीं
तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ
साक़ी के करम से फ़ैज़ ये जारी है
चमन में जा के हम ने ग़ौर से औराक़-ए-गुल देखे
कुछ कहे जाता था ग़र्क़ अपने ही अफ़्साने में था
बाज़ अहल-ए-वतन से अब भी दुख पाता हूँ