मैं हम-नफ़स हूँ मुझे राज़-दाँ भी करना था

मैं हम-नफ़स हूँ मुझे राज़-दाँ भी करना था

जो तुझ पे बीत रही है बयाँ भी करना था

अता किया था मकाँ किस लिए अगर मुझ को

तमाम शहर में बे-ख़ानुमाँ भी करना था

तिरे ख़याल की सरहद से भी परे जो था

मुझे उबूर वो दश्त-ए-ज़ियाँ भी करना था

तो क्या वो मौसम-ए-शोरिश में ही ये भूल गए

बहाल शहर में अम्न-ओ-अमाँ भी करना था

उस आफ़्ताब को अपनी रिदा उतारनी थी

हमारे चश्मा-ए-ख़ूँ को रवाँ भी करना था

बना दिया दर-ओ-दीवार ख़ामुशी से अगर

तो फिर मकाँ को मिरे ला-मकाँ भी करना था

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In Hindi By Famous Poet Shafaq Supuri. is written by Shafaq Supuri. Complete Poem in Hindi by Shafaq Supuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.