दिल से
हज़ार ख़याल निकलते
जब से
तुम्हें देखा है
तुम से पहले
ज़िंदगी में कोई
चमक नहीं थी
अब हाथ भी
दुआ को उठते हैं
अब नमाज़ भी मैं पढ़ता हूँ
मैं ऐसा नहीं था
तुम को देखा तो
दस्त-ए-सवाल हुआ मैं
Allama Iqbal
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(411) Peoples Rate This
'मीर'-ओ-'ग़ालिब' की तरह सेहर-बयाँ से निकले
दामन में आँसू मत बोना
फ़रियाद
मेरा उस का साथ
जो मैं ने सोचा था
समुंदर का रास्ता
मैं और तुम
मा'दूम होती ख़ुश्बू
मेरी शाइ'री
मेरा शहर
तेरी संग