लहू का दाग़ न था ज़ख़्म का निशान न था

लहू का दाग़ न था ज़ख़्म का निशान न था

वो मर चुका था किसी को मगर गुमान न था

मैं चल पड़ा था कहीं अजनबी दिशाओं में

हवा का ज़ोर था कश्ती में बादबान न था

मैं उस मकान में मुद्दत से क़ैद था कि जहाँ

कोई ज़मीन न थी कोई आसमान न था

मिरी शिकस्त मिरी फ़तह कुछ नहीं यानी

वो हादसा था कोई मेरा इम्तिहान न था

तुम्हारे दौर में हर आदमी है बुत की तरह

हमारे अहद में पत्थर भी बे-ज़बान न था

किसी खंडर में ही मुझ को दिया जलाना पड़ा

चमकते शहर में मेरा कोई मकान न था

मैं सब्ज़ रंग का चश्मा पहन चुका था 'कलीम'

मिरी निगाह में मंज़र लहूलुहान न था

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In Hindi By Famous Poet Shahid Kaleem. is written by Shahid Kaleem. Complete Poem in Hindi by Shahid Kaleem. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.