शहनवाज़ ज़ैदी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शहनवाज़ ज़ैदी

शहनवाज़ ज़ैदी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शहनवाज़ ज़ैदी
नामशहनवाज़ ज़ैदी
अंग्रेज़ी नामShahnawaz Zaidi

ये सूखे पत्ते नहीं ज़माने पे तब्सिरे हैं

वो मिरे कासे में यादें छोड़ कर यूँ चल दिया

उस की आँखों में मोहब्बत का गुमाँ तक नहीं आज

तितलियाँ फूल में क्या ढूँढती रहती हैं सदा

सहर होते ही जैसे रेत भर जाती है साँसों में

''जो भी आवे है वो नज़दीक ही बैठे है तिरे''

चेहरों को पैरों से कुचल कर आगे बढ़ जाना

उलझा उस की दीद में

तेरी तख़्लीक़ तिरा रंग हवाला था मिरा

सूरज तिरी दहलीज़ में अटका हुआ निकला

शिकस्त-ए-शीशा-ए-दिल की दवा मैं क्या करता

सभी रास्ते तिरे नाम के सभी फ़ासले तिरे नाम के

रौशन आईनों में झूटे अक्स उतार गया

पहले जैसा नहीं रहा हूँ

मोहब्बत से तिरी यादें जगा कर सो रहा हूँ

मिसरे के वस्त में खड़ा हूँ

मेज़ पे चेहरा ज़ुल्फ़ें काग़ज़ पर

मिरे ख़ुदा कोई छाँव कोई ज़मीं कोई घर

किसी बंजर तख़य्युल पर किसी बे-आब रिश्ते में

जब आफ़्ताब से चेहरा छुपा रही थी हवा

हर किसी ख़्वाब के चेहरे पे लिखूँ नाम तिरा

दिल भी दाग़-ए-नक़्श-ए-कुहन से बुझा हुआ था

दरीचा आइने पर खुल रहा है

आओ फिर मिल जाएँ सब बातें पुरानी छोड़ कर

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