तुम्हारी अपनी दुनिया है
तुम्हारे रोज़-ओ-शब शाम-ओ-सहर अपने
तुम इक आज़ाद पंछी हो
मिरी जागीर का हिस्सा नहीं हो तुम
मगर कल शाम जब तुम मुझ से मिलने आओ
(जैसा तुम ने लिक्खा है)
तो आँखों में
ज़रा काजल लगा आना
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Habib Jalib
Anwar Masood
Rahat Indori
Gulzar
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(535) Peoples Rate This
अभी मैं ये सोच ही रहा था
नदी थी कश्तियाँ थीं चाँदनी थी झरना था
कल शाम
ब-नाम-ए-इश्क़ इक एहसान सा अभी तक है
नसीब-ए-चश्म में लिक्खा है गर पानी नहीं होना
समुंदर तिश्नगी वहशत रसाई चश्मा-ए-लब तक
फ़क़त ज़मान ओ मकाँ में ज़रा सा फ़र्क़ आया
जो इस बरस नहीं अगले बरस में दे दे तू
पहले इश्क़ की मौत पर
वो एक लम्हा-ए-रफ़्ता भी क्या बुला लाया
लौह-ए-अय्याम
तुम अपनी सब्ज़ आँखें बंद कर लो