हमारे पेश-ए-नज़र मंज़िलें कुछ और भी थीं
ये हादसा है कि हम तेरे पास आ पहुँचे
Habib Jalib
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Allama Iqbal
Wasi Shah
Gulzar
Parveen Shakir
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(419) Peoples Rate This
उम्र जितनी भी कटी उस के भरोसे पे कटी
कोई बताओ कि किस के लिए तलाश करें
बहुत शर्मिंदा हूँ इबलीस से मैं
सुपुर्दगी का वो लम्हा कभी नहीं गुज़रा
ये किस ग़म से अक़ीदत हो गई है
हमारे शहर में है वो गुरेज़ का आलम
दिल-आराम
छोड़ने मैं नहीं जाता उसे दरवाज़े तक
आरज़ूओं ने कई फूल चुने थे लेकिन
हम लोगों को अपने दिल के राज़ बताते रहते हैं
उड़ते हुए आते हैं अभी संग-ए-तमन्ना
झूटी बातें रहने दो