ये चाँद ही तिरी झोली में आ पड़े शायद
ज़मीं पे बैठ कमंद आसमाँ पे डाले जा
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Habib Jalib
Anwar Masood
Jaun Eliya
Gulzar
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(632) Peoples Rate This
दुनिया में अंधेरों के सिवा और रहा क्या
न सही कुछ मगर इतना तो किया करते थे
जब चल पड़े तो बर्क़ की रफ़्तार से चले
आँखें न खुलें नूर के सैलाब में मेरी
ये सोच कर कि तेरी जबीं पर न बल पड़े
आता है ख़ौफ़ आँख झपकते हुए मुझे
जवाज़ कोई अगर मेरी बंदगी का नहीं
तेरे सीने में भी इक दाग़ है तन्हाई का
जो सामने था उस के ख़द-ओ-ख़ाल नहीं याद
तू कुछ भी हो कब तक तुझे हम याद करेंगे
ये भी सच है कि नहीं है कोई रिश्ता तुझ से
चाहता हूँ कि हो परवाज़ सितारों से बुलंद