शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम (page 3)

शैख़  ज़हूरूद्दीन हातिम कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शैख़  ज़हूरूद्दीन हातिम (page 3)
नामशैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
अंग्रेज़ी नामShaikh Zahuruddin Hatim
जन्म की तारीख1699
मौत की तिथि1783
जन्म स्थानDelhi

निगाहें जोड़ और आँखें चुरा टुक चल के फिर देखा

ने काबा की हवस न हवा-ए-कुनिश्त है

नज़र में उस की जो चढ़ता है सो जीता नहीं बचता

नज़र में बंद करे है तू एक आलम को

नौ-जवानों को देख कर 'हातिम'

नासूर की सिफ़त है न होगा कभू वो बंद

नासेह बग़ल में आ कर दुश्मन हुआ हमारा

नमाज़ियों ने तुझ अबरू को देख मस्जिद में

नमक-ए-हुस्न का सुनता हूँ तिरे जूँ जूँ शोर

नहीं है शिकवा अगर वो नज़र नहीं आता

न मैं ने कुछ कहा तुझ से न तू ने मुझ से कुछ पूछा

न कुछ सितम से तिरे आह आह करता हूँ

मुल्क-ए-अदम से दहर के मातम-कदे के बीच

मुझे तावीज़ लिख दो ख़ून-ए-आहू से कि ऐ स्यानो

मुझे क्या देख कर तू तक रहा है

मुहय्या सब है अब अस्बाब-ए-होली

मुद्दत से ख़्वाब में भी नहीं नींद का ख़याल

मुद्दत से आरज़ू है ख़ुदा वो घड़ी करे

मुद्दत हुई पलक से पलक आश्ना नहीं

मोतकिफ़ हो शैख़ अपने दिल में मस्जिद से निकल

मेरी फ़रियाद कोई नईं सुनता

मिरी बातों से अब आज़ुर्दा न होना साक़ी

मेरे हवास-ए-ख़मसा उसे देख उड़ गए

मेरे आँसू के पोछने को मियाँ

मेरा माशूक़ है मज़ों में भरा

मिरा दिल बार-ए-इश्क़ ऐसा उठाने में दिलावर है

मज़रा-ए-दुनिया में दाना है तो डर कर हाथ डाल

मज़हर-ए-हक़ कब नज़र आता है इन शैख़ों के तईं

मौसम-ए-गुल का मगर क़ाफ़िला जाता है कि आज

मस्तों का दिल है शीशा और संग-दिल है साक़ी

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