मुहय्या सब है अब अस्बाब-ए-होली
उठो यारो भरो रंगों से झोली
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दर्द-ए-दिल मेरी आह से पूछो
बुल-हवस गो करें तेरे लब-ए-शीरीं पर हुजूम
चमन ख़राब किया, हो ख़िज़ाँ का ख़ाना-ख़राब
निगाहें जोड़ और आँखें चुरा टुक चल के फिर देखा
असीरों का नहीं कुछ शोर-ओ-ग़ुल ये आज ज़िंदाँ में
दिल की लहरों का तूल-ओ-अर्ज़ न पूछ
जी तरसता है यार की ख़ातिर
चमन में दहर के हर गुल है कान की सूरत
रात दिन जारी हैं कुछ पैदा नहीं इन का कनार
कभू पहुँची न उस के दिल तलक रह ही में थक बैठी
कई दीवान कह चुका 'हातिम'