रहन-ए-शराब-ख़ाना किया शैख़ हैफ़ है
जो पैरहन बनाया था एहराम के लिए
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कहाँ है दिल जो कहूँ होवे आ के दीवाना
न कुछ सितम से तिरे आह आह करता हूँ
है राह-ए-आशिक़ी तारीक और बारीक और सुकड़ी
हाथ आता नहीं बग़ैर नसीब
ने काबा की हवस न हवा-ए-कुनिश्त है
होली
तू जो मूसा हो तो उस का हर तरफ़ दीदार है
अज़ल से दिल है सज्दा में तिरे अबरू के मस्जिद में
कुन के कहने में जो हुआ सो हुआ
इन दिनों सब को हुआ है साफ़-गोई का तलाश
मोतकिफ़ हो शैख़ अपने दिल में मस्जिद से निकल
खेल सब छोड़ खेल अपना खेल