तबीबों की तवज्जोह से मरज़ होने लगा दूना
दवा इस दर्द की बतला दिल-ए-आगाह क्या कीजे
Gulzar
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Javed Akhtar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Habib Jalib
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(497) Peoples Rate This
कपड़े सफ़ेद धो के जो पहने तो क्या हुआ
अहल-ए-म'अनी जुज़ न बूझेगा कोई इस रम्ज़ को
टूटे दिल को बना दिखावे
गुल की और बुलबुल की सोहबत को चमन का शाना है
मुझे क्या देख कर तू तक रहा है
मेरी फ़रियाद कोई नईं सुनता
जो अज़ल में क़लम चली सो चली
इश्क़ है दारुश्शिफ़ा और दर्द है उस का तबीब
ख़ुदा के वास्ते उस से न बोलो
समझते हम नहीं जो तुम इशारों बीच कहते हो
देखूँ हूँ तुझ को दूर से बैठा हज़ार कोस
उस वक़्त दिल मिरा तिरे पंजे के बीच था