तेरे आने से यू ख़ुशी है दिल
जूँ कि बुलबुल बहार की ख़ातिर
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क़िस्सा-ए-मजनूँ-ओ-फ़र्हाद भी इक पर्दा है
दर-ओ-दीवार-ए-चमन आज हैं ख़ूँ से लबरेज़
तब्अ तेरी अजब तमाशा है
कुन के कहने में जो हुआ सो हुआ
मालूम है किसू को कि वो आज शोला-ख़ू
दौरा है जब से बज़्म में तेरी शराब का
अदल से कर सल्तनत ऐ दिल तू तन के मुल्क में
तिरी जो ज़ुल्फ़ का आया ख़याल आँखों में
अहल-ए-म'अनी जुज़ न बूझेगा कोई इस रम्ज़ को
जो मिरे हम-अस्र हम-सोहबत थे सो सब मर गए
पहन कर जामा बसंती जो वो निकला घर सूँ
क्यूँकि दीवाना बेड़ियाँ तोड़े