तिरी निगह से गए खुल किवाड़ छाती के
हिसार-ए-क़ल्ब की गोया थी फ़तह तेरे नाम
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बस नहीं चलता जो उस दम उन के ऊपर गर पड़े
हस्ती से ता-अदम है सफ़र दो क़दम की राह
दर्द तू मेरे पास से मरते तलक न जाइयो
देखने से तिरे जी पाता हूँ
जामा उर्यानी का क़ामत पर मिरी आया है रास्त
जिस को देखा सो यहाँ दुश्मन-ए-जाँ है अपना
जिस तरफ़ को मैं गया रोता हुआ
मैं अपने दस्त पर शब ख़्वाब में देखा कि अख़गर था
कोई बतलाता नहीं आलम में उस के घर की राह
देख बुनियाद रब की आदम है
शैख़ तू तो मुरीद-ए-हस्ती है
ख़ुम-ख़ाना मय-कशों ने किया इस क़दर तही