तीर-ए-निगह लगा के तुम कहते हो फिर लगा न ख़ूब
मेरा तो काम हो गया सीने के पार हो न हो
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Rahat Indori
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(370) Peoples Rate This
जो कोई कि यार-ओ-आश्ना है
कहाँ है दिल जो कहूँ होवे आ के दीवाना
मैं कुफ़्र ओ दीं से गुज़र कर हुआ हूँ ला-मज़हब
छल-बल उस की निगाह का मत पूछ
किस तरह से गुज़ार करूँ राह-ए-इश्क़ में
एक तो तिरी दौलत था ही दिल ये सौदाई
मिरा दिल बार-ए-इश्क़ ऐसा उठाने में दिलावर है
हर गुल उस बाग़ का नज़रों में दहाँ है गोया
मेरे हवास-ए-ख़मसा उसे देख उड़ गए
गर भला मानस है तो ख़ंदों से तू मिल मिल न हँस
जब हुए 'हातिम' हम उस से आश्ना
क्यूँकि दीवाना बेड़ियाँ तोड़े