तुम तो बैठे हुए पुर-आफ़त हो
उठ खड़े हो तो क्या क़यामत हो
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तबीबों की तवज्जोह से मरज़ होने लगा दूना
हस्ती की क़ैद से ऐ दिल आज़ाद होइए
नमक-ए-हुस्न का सुनता हूँ तिरे जूँ जूँ शोर
दे के दिल हाथ तिरे अपने हाथ
दर-ओ-दीवार-ए-चमन आज हैं ख़ूँ से लबरेज़
मैं जितना ढूँढता हूँ उस को उतना ही नहीं पाता
कभू पहुँची न उस के दिल तलक रह ही में थक बैठी
वो वहशी इस क़दर भड़का है सूरत से मिरे यारो
रहन-ए-शराब-ख़ाना किया शैख़ हैफ़ है
चला जाता था 'हातिम' आज कुछ वाही-तबाही सा
कलेजा मुँह को आया और नफ़स करने लगा तंगी
अनल-हक़ की हक़ीक़त को जो हो मंसूर सो जाने