तुम्हारी देख सज ऐ तंग-पोशो
हुए ढीले मिरे कपड़े बदन के
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जल्वा-गर फ़ानूस-ए-तन में है हमारा मन चराग़
नौ-जवानों को देख कर 'हातिम'
दिल था बग़ल में मुद्दई ख़ूब हुआ जो ग़म हुआ
ऐ मुसलमानो बड़ा काफ़िर है वो
खेल सब छोड़ खेल अपना खेल
किस से कहूँ मैं हाल-ए-दिल अपना कि ता सुने
घर-ब-घर है वो मस्त-ए-इश्वा-ओ-नाज़
दिल को मारा चश्म ने अबरू की तलवारों से आज
ज़ाहिदो उठ जाओ मज्लिस से कि आज
अजब अहवाल देखा इस ज़माने के अमीरों का
तबीबों की तवज्जोह से मरज़ होने लगा दूना