यूँ न हो यूँ हो यूँ हुआ सो क्यूँ
क्या है ये गुफ़्तुगू हुआ सो हुआ
Rahat Indori
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ज़ुल्फ़ों की नागनी तो तिरी हम ने केलियाँ
नासेह बग़ल में आ कर दुश्मन हुआ हमारा
हक़ से मिलना गेरवे कपड़ों उपर मौक़ूफ़ नईं
देखते सज्दे में आता है जो करता है निगाह
आगे क्या तुम सा जहाँ में कोई महबूब न था
जिस ने आदम के तईं जाँ बख़्शा
चला जाता था 'हातिम' आज कुछ वाही-तबाही सा
दोस्तों से दुश्मनी और दुश्मनों से दोस्ती
जब से तेरी नज़र पड़ी है झलक
जिस कूँ पी का ख़याल होता है
मस्जिद में सर पटकता है तो जिस के वास्ते
इस वास्ते निकलूँ हूँ तिरे कूचे से बच बच