ज़ाहिद को हम ने देख ख़राबात में कहा
मस्जिद को अपनी छोड़ कहो तुम यहाँ कहाँ
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हम सीं मस्तों को बस है तेरी निगाह
गली में उस की न देखा कभू किसी को मगर
कोई बतलाता नहीं आलम में उस के घर की राह
टूटे दिल को बना दिखावे
कोई देता नहीं है दाद बे-दाद
यार निकला है आफ़्ताब की तरह
है अबस 'हातिम' ये सब मज़मून ओ मअ'नी का तलाश
ज़ाहिदो उठ जाओ मज्लिस से कि आज
क्यूँकि दीवाना बेड़ियाँ तोड़े
तरीक़त में अगर ज़ाहिद मुझे गुमराह जाने है
हस्ती की क़ैद से ऐ दिल आज़ाद होइए
तेरे आगे ले चुका ख़ुसरव लब-ए-शीरीं से काम