ज़ाहिदो उठ जाओ मज्लिस से कि आज
बे-तरह आता है वो मय-ख़्वार मस्त
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वो वहशी इस क़दर भड़का है सूरत से मिरे यारो
कशिश से दिल की उस अबरू कमाँ को हम रखा बहला
हम सीं मस्तों को बस है तेरी निगाह
इश्क़ उस का आन कर यक-बारगी सब ले गया
देखने से तिरे जी पाता हूँ
आब-ए-हयात जा के किसू ने पिया तो क्या
ख़ुदा के वास्ते उस से न बोलो
हस्ती से ता-अदम है सफ़र दो क़दम की राह
कभू पहुँची न उस के दिल तलक रह ही में थक बैठी
'हातिम' उस ज़ालिम के अबरू को न छेड़
है अबस 'हातिम' ये सब मज़मून ओ मअ'नी का तलाश
इस वास्ते निकलूँ हूँ तिरे कूचे से बच बच