ज़र्फ़ टूटा तो वस्ल होता है
दिल कोई टूटा किस तरह जोड़े
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क़िस्सा-ए-मजनूँ-ओ-फ़र्हाद भी इक पर्दा है
उस वक़्त दिल मिरा तिरे पंजे के बीच था
मुझे क्या देख कर तू तक रहा है
जो जी में आवे तो टुक झाँक अपने दिल की तरफ़
आज दिलबर के नाम को रट रट
जब आप से ही गुज़र गए हम
मस्जिद में सर पटकता है तो जिस के वास्ते
वक़्त फ़ुर्सत दे तो मिल बैठें कहीं बाहम दो दम
बे तिरे जान न थी जान मिरी जान के बीच
अगर रोते न हम तो देखते तुम
मैं जाँ-ब-लब हूँ ऐ तक़दीर तेरे हाथों से
आ कर तिरी गली में क़दम-बोसी के लिए