दाएरे

ऊँचे मकानों की दीवारों पर हरी भरी फूलों की बेल

सुरमई बादलों के घुँघट से मेरी छोटी खिड़की की तरफ़

देखती है

प्रसुएडर्स टीवी पर फ़िल्म चल रही है

मैं किस के तआ'क़ुब में अपनी तरफ़ भाग रही हूँ

मैं कोल्हू का बैल हूँ

रोज़ एक दायरा अपने इर्द-गिर्द खींचती हूँ और इस दाएरे

के आगे एक और दायरा फिर एक और

यूँ आगे ही आगे दाएरे ही दाएरे

ज़िंदगी का सफ़र दाएरों से लिखा गया

सुबह दोपहर शाम आँसू की रोटी दुख का सालन और

सर्द आहों का पानी

बरसातों की शामें निर्मल कोमल दिल को यूँ दहलाती हैं

जैसे आतिश-दान की क़रीब सोई बिल्ली अन-जाने क़दमों से चौंक जाए

ये भी एक दायरा है

इस दाएरे के अंदर हमारे हथियार ज़मीन पर पड़ते हैं

और हम हाथ उठाए आसमानी आवाज़ पर

आगे ही आगे बे-सम्त चलते जा रहे हैं

दाएरे बनते जा रहे हैं

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In Hindi By Famous Poet Shaista Habeeb. is written by Shaista Habeeb. Complete Poem in Hindi by Shaista Habeeb. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.