गुल नहीं ख़ार समझते हैं मुझे

गुल नहीं ख़ार समझते हैं मुझे

सब गिराँ-बार समझते हैं मुझे

हैं अँधेरे भी गुरेज़ाँ मुझ से

चश्म-ए-बेदार समझते हैं मुझे

मेरी पेशानी पे मेहराब नहीं

वो गुनहगार समझते हैं मुझे

दौलत-ए-दर्द मेरा सरमाया

क्यूँ वो नादार समझते हैं मुझे

दूर बैठे हैं मिरी महफ़िल से

वज्ह-ए-आज़ार समझते हैं मुझे

चारा-गर भी हैं गुरेज़ाँ मुझ से

तेरा बीमार समझते हैं मुझे

क्या कहूँ उन से मआ'ल-ए-उल्फ़त

जो तिरी हार समझते हैं मुझे

मेरी ग़ुर्बत नहीं खुलती मुझ पर

लोग ज़रदार समझते हैं मुझे

मेरा इसबात मोहब्बत है मिरी

और वो इंकार समझते हैं मुझे

मैं नहीं बज़्म से जाने वाली

अहल-ए-दरबार समझते हैं मुझे

कब समझना वो मुझे चाहते हैं

कार-ए-दुश्वार समझते हैं मुझे

क्यूँ 'सहर' हाल सुनाऊँ उन को

मेरे ग़म-ख़्वार समझते हैं मुझे

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In Hindi By Famous Poet Shaista Sahar. is written by Shaista Sahar. Complete Poem in Hindi by Shaista Sahar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.