काफ़ी है मिरे दिल की तसल्ली को यही बात
आप आ न सके आप का पैग़ाम तो आया
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ख़ुश हूँ कि मिरा हुस्न-ए-तलब काम तो आया
अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे
न पैमाने खनकते हैं न दौर-ए-जाम चलता है
जल्वा-ए-हुस्न-ए-करम का आसरा करता हूँ मैं
आप जो कुछ कहें हमें मंज़ूर
लम्हा लम्हा बार है तेरे बग़ैर
बात जब है ग़म के मारों को जिला दे ऐ 'शकील'
नसीब दर पे तिरे आज़माने आया हूँ
वो हम से ख़फ़ा हैं हम उन से ख़फ़ा हैं
सब करिश्मात-ए-तसव्वुर हैं 'शकील'
ज़मीं पर फ़स्ल-ए-गुल आई फ़लक पर माहताब आया
मुझे भूल जा