भुगत रहा हूँ ख़ुद अपने किए का ख़म्याज़ा

भुगत रहा हूँ ख़ुद अपने किए का ख़म्याज़ा

टपक रहा है जो आँखों से ये लहू ताज़ा

किसी की याद के साए को हम-सफ़र समझा

लगा सको तो लगा लो जुनूँ का अंदाज़ा

किसे मजाल कि अब मेरे दिल में घर कर ले

है गरचे अब भी खुला अपने दिल का दरवाज़ा

निगार-ए-वक़्त ने हर-सू कमंद डाली है

बिखर न जाए कहीं अंजुमन का शीराज़ा

ख़ुदा गवाह है उन को भी दे रहा हूँ दुआ

जो कसते रहते हैं 'शाकिर' पे रोज़ आवाज़ा

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In Hindi By Famous Poet Shakir Khaliq. is written by Shakir Khaliq. Complete Poem in Hindi by Shakir Khaliq. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.