बहुत घुटन है बहुत इज़्तिराब है मौला

बहुत घुटन है बहुत इज़्तिराब है मौला

हमारे सर पे ये कैसा अज़ाब है मौला

सुना था मैं ने यही दिन हैं फूल खिलने के

मिरे लिए तो ये मौसम ख़राब है मौला

कोई बताए हमारी समझ से बाहर है

किसे गुनाह कहें क्या सवाब है मौला

अज़ल से तेरी ज़मीं पर खड़े हैं तेरे ग़ुलाम

सरों पे उन के वही आफ़्ताब है मौला

गुनाह जितने भी मेरे हैं सब शुमार में हैं

तिरा करम तो मगर बे-हिसाब है मौला

कुछ और ज़िल्लत-ओ-रुस्वाइयाँ मुक़द्दर हों

'शमीम' वैसे भी ख़ाना-ख़राब है मौला

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In Hindi By Famous Poet Shamim Farooqui. is written by Shamim Farooqui. Complete Poem in Hindi by Shamim Farooqui. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.