किस तरह आए हैं इस पहली मुलाक़ात तलक
और मुकम्मल है जुदा होने की तय्यारी भी
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बहुत हिम्मत का है ये काम 'शारिक़'
मोहब्बत की इंतिहा पर
आइने का साथ प्यारा था कभी
सफ़र से मुझ को बद-दिल कर रहा था
बात फाँसी के दिन की नहीं
सारी दुनिया से लड़े जिस के लिए
एक मुद्दत हुई घर से निकले हुए
वो दिन भी थे कि इन आँखों में इतनी हैरत थी
फ़ैसले औरों के करता हूँ
जन्नत से दूर
कहाँ सोचा था मैं ने बज़्म-आराई से पहले
कुत्ते की मौत