शब-ए-वा'दा कह गई है शब-ए-ग़म दराज़ रखना
शब-ए-वा'दा कह गई है शब-ए-ग़म दराज़ रखना
इसे मैं भी राज़ रक्खूँ इसे तुम भी राज़ रखना
ये है ख़ार ख़ार वादी यूँही ज़ख़्म ज़ख़्म चलना
ये है पत्थरों की बस्ती यूँही दिल-ए-गुदाज़ रखना
हमा-तन जुनूँ हूँ फिर भी रहे कुछ तो पर्दा-दारी
कि बुरा नहीं ख़िरद से कोई साज़-बाज़ रखना
मिरे नाख़ुन-ए-वफ़ा पर कोई क़र्ज़ रह न जाए
तिरे दिल में जो गिरह है उसे नीम-बाज़ रखना
वही लय जो अन-सुनी भी वही 'शाज़' नग़्मगी भी
ये हिसाब-ए-ख़ामुशी भी मिरे नय-नवाज़ रखना
(623) Peoples Rate This