इतनी न बढ़ा पाकी-ए-दामाँ की हिकायत
दामन को ज़रा देख ज़रा बंद-ए-क़बा देख
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Gulzar
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Parveen Shakir
Wasi Shah
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2725) Peoples Rate This
कहूँ मैं क्या कि क्या दर्द-ए-निहाँ है
जब रक़ीबों का सितम याद आया
आशुफ़्ता-ख़ातिरी वो बला है कि 'शेफ़्ता'
उठ सुब्ह हुई मुर्ग़-ए-चमन नग़्मा-सरा देख
मर गए हैं जो हिज्र-ए-यार में हम
मैं वस्ल में भी 'शेफ़्ता' हसरत-तलब रहा
इश्क़ की मेरे जो शोहरत हो गई
कौन से दिन तिरी याद ऐ बुत-ए-सफ़्फ़ाक नहीं
कब निगह उस की इश्वा-बार नहीं
शब वस्ल की भी चैन से क्यूँकर बसर करें
मह्व हूँ मैं जो उस सितमगर का