किस लिए लुत्फ़ की बातें हैं फिर
क्या कोई और सितम याद आया
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कम-फ़हम हैं तो कम हैं परेशानियों में हम
है बद बला किसी को ग़म-ए-जावेदाँ न हो
तूफ़ान-ए-नूह लाने से ऐ चश्म फ़ाएदा
जिस लब के ग़ैर बोसे लें उस लब से 'शेफ़्ता'
शोख़ी ने तेरी लुत्फ़ न रक्खा हिजाब में
हज़ार दाम से निकला हूँ एक जुम्बिश में
इज़हार-ए-इश्क़ उस से न करना था 'शेफ़्ता'
दिल का गिला फ़लक की शिकायत यहाँ नहीं
इश्क़ की मेरे जो शोहरत हो गई
हम तालिब-ए-शोहरत हैं हमें नंग से क्या काम
गोर में याद-ए-क़द-ए-यार ने सोने न दिया