हिजाब-ए-राज़ फ़ैज़-ए-मुर्शिद-ए-कामिल से उठता है

हिजाब-ए-राज़ फ़ैज़-ए-मुर्शिद-ए-कामिल से उठता है

नज़र हक़-आश्ना होती है पर्दा दिल से उठता है

जला जाता हूँ बार-ए-सोज़-ए-ग़म मुश्किल से उठता है

वो अश्कों से नहीं बुझता जो शोला दिल से उठता है

कहाँ ख़ंजर भी दस्त-ए-नावक-ए-क़ातिल से उठता है

नज़ाकत से हिना का बार भी मुश्किल से उठता है

ये किस ने डाल दी बहर-ए-तलातुम-ख़ेज़ में कश्ती

ये शोर-ए-हर्चे-बादा-बाद क्यूँ साहिल से उठता है

कशीदा जिस से तुम होते हो कोई रुख़ नहीं करता

गिराते हो नज़र से तुम जिसे मुश्किल से उठता है

ये आँसू कस्म-पुर्सी किस के मातम में बहाती है

जनाज़ा आज किस का कूचा-ए-क़ातिल से उठता है

मगर तासीर पैदा हो गई मजनूँ के नालों में

कि पर्दा आज दस्त-ए-लैला-ए-महमिल से उठता है

रुख़-ए-बे-पर्दा उन का याद आता है शब-ए-हिज्राँ

हिजाब-ए-अब्र जब रू-ए-मह-ए-कामिल से उठता है

लगा दी आतिश-ए-ख़ामोश क्या सोज़-ए-मोहब्बत ने

इलाही ख़ैर दूद-ए-आह-ए-सोज़ाँ दिल से उठता है

किया शर्मिंदा इतना सख़्त-जानी ने नज़ाकत से

ख़जालत से सर उन के सामने मुश्किल से उठता है

कलेजा थाम लें दीदार-ए-जानाँ देखने वाले

बस अब पर्दा रुख़-ए-रश्क-ए-मह-ए-कामिल से उठता है

चले अहबाब आग़ोश-ए-लहद में छोड़ कर मुझ को

कि हमदर्दी का जज़्बा पहली ही मंज़िल से उठता है

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In Hindi By Famous Poet Sher Singh Naaz Dehlvi. is written by Sher Singh Naaz Dehlvi. Complete Poem in Hindi by Sher Singh Naaz Dehlvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.