चाहे दीवाना कहें या लोग सौदाई कहें
आ गए हम सर को ले कर पत्थरों के शहर में
Mir Taqi Mir
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Jaun Eliya
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Parveen Shakir
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शाम-ए-ग़म की सहर न हो जाए
याद है अब तक मुझे अहद-ए-जवानी याद है
कहीं आँसुओं से लिखा हुआ कहीं आँसुओं से मिटा हुआ
साथ तेरा रहा नहीं बाक़ी
हुआ जब जल्वा-आरा आप का ज़ौक़-ए-ख़ुद-आराई
कोई हम से ख़फ़ा सा लगता है
इक दामन में फूल भरे हैं इक दामन में आग ही आग
वो निकले हैं सरापा बन-सँवर कर
दिलों को तोड़ने वालो ख़ुदा का ख़ौफ़ करो
न रहबर ने न उस की रहबरी ने
जब तिरा आसरा नहीं मिलता