अपना ख़ालिक़ ख़ुद ही था मेरा ख़ुदा कोई न था

अपना ख़ालिक़ ख़ुद ही था मेरा ख़ुदा कोई न था

इस जहाँ में मुझ से पहले दूसरा कोई न था

रात-भर चलता रहा था चाँद मेरे साथ साथ

दश्त में उस का कहीं भी नक़्श-ए-पा कोई न था

फ़ासले ही फ़ासले थे मंज़िलें ही मंज़िलें

हम-सफ़र कोई न था और रहनुमा कोई न था

वो पयम्बर था खड़ा था इक गली के मोड़ पर

अजनबी बस्ती में उस को जानता कोई न था

दूर तक फैली हुई थीं दर्द की तन्हाइयाँ

दो दिलों के दरमियाँ जब फ़ासला कोई न था

किस क़दर सुनसान थी उस शहर-ए-उल्फ़त की गली

बंद थे सारे दरीचे झाँकता कोई न था

गूँजती थीं जब तुम्हारी याद की ख़ामोशियाँ

दिल के वीराने नगर में जागता कोई न था

जिस्म-ओ-जाँ की क़ैद में रहना पड़ा इक उम्र तक

बच निकलने का कहीं भी रास्ता कोई न था

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In Hindi By Famous Poet Shola Haspanvi. is written by Shola Haspanvi. Complete Poem in Hindi by Shola Haspanvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.