'शुजा' वो ख़ैरियत पूछें तो हैरत में न पड़ जाना
परेशाँ करने वाले ख़ैर-ख़्वाहों में भी होते हैं
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चेहरे पे थोड़ी रक्खी है
तंगी-ए-हैअत से टकराता हुआ जोश-ए-मवाद
उस बेवफ़ा का शहर है और वक़्त-ए-शाम है
कुछ नहीं बोला तो मर जाएगा अंदर से 'शुजाअ'
हम सूफ़ियों का दोनों तरफ़ से ज़ियाँ हुआ
ये दुनिया-दारी और इरफ़ान का दावा 'शुजा-ख़ावर'
सर्दी भी ख़त्म हो गई बरसात भी गई
तंहाई का इक और मज़ा लूट रहा हूँ
मैं ने सिर्फ़ अपने नशेमन को सजाया साल भर
ज़िंदगी भर ज़िंदा रहने की यही तरकीब है
अब तेरे लिए हैं न ज़माने के लिए हैं