न देखा जामा-ए-ख़ुद-रफ़्तगी उतार के भी

न देखा जामा-ए-ख़ुद-रफ़्तगी उतार के भी

चली गईं तिरी यादें मुझे पुकार के भी

ये ज़िंदगी है उसे तल्ख़ तुर्श होना है

सऊबतों के ज़रा देख दिन गुज़ार के भी

हबाब-ए-ज़ीस्त न दस्त-ए-क़ज़ा से टूट सका

हयात बाक़ी रही क़ब्र में उतार के भी

तिरे ग़ुरूर के है रू-ब-रू ये ख़ुश-शिकनी

झुका के सर न हुए पेश शहरयार के भी

बदी न रोकें पे नफ़रत तो कर ही लेते हैं

मुज़ाहिरे हैं ये कुछ अपने इख़्तियार के भी

कभी गले भी मिलो आ के शाख़-ए-गुल की तरह

अदा तो कर दिए हक़ हम ने इंतिज़ार के भी

क़ुबूल ओ रद के सभी इख़्तियार उस के थे

मगर मैं ख़ुश था तमन्ना को उस पे वार के भी

बहार हो तो लहू में उतरती है 'शाहिद'

हमें तो छू के न गुज़रे ये दिन बहार के भी

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In Hindi By Famous Poet Siddiq Shahid. is written by Siddiq Shahid. Complete Poem in Hindi by Siddiq Shahid. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.