बुल-हवस में भी न था वो बुत भी हरजाई न था

बुल-हवस में भी न था वो बुत भी हरजाई न था

फिर भी हम बहरूपियों को ख़ौफ़-ए-रुस्वाई न था

आँधियों ने सब मिटा डाले नुक़ूश-ए-रह-गुज़ार

रेत के सीने पे दाग़-ए-आबला-पाई न था

रात के काले कुएँ में छुप गया साया मिरा

इस से पहले तो कभी ये रंग-ए-तन्हाई न था

वहम का पैकर था आवेज़ां दर-ओ-दीवार पर

खिड़कियों में चाँद महव-ए-जल्वा-आराई न था

सब्ज़ पेड़ों के तने कट कट के क्यूँ गिरने लगे

ऐ हवा मैं क़त्ल-ओ-ग़ारत का तमन्नाई न था

रौशनी देती थी चमकीले बदन की ताज़गी

वर्ना मैं चेहरे के ख़ाल-ओ-ख़द का शैदाई न था

क्या तर-ओ-ताज़ा था आब-ए-सुब्ह से नख़्ल-ए-शफ़क़

बुझते सूरज में तो ये अंदाज़-ए-रानाई न था

एक इक किरदार था अपनी अदाकारी में गुम

उस तमाशा-गाह में कोई तमाशाई न था

मर गया 'सिद्दीक़' कोह-ए-ग़म से टक्कर मार कर

सर में सौदा था मगर शौक़-ए-जबीं-साई न था

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In Hindi By Famous Poet Siddique Afghani. is written by Siddique Afghani. Complete Poem in Hindi by Siddique Afghani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.