नाख़ुदा हो कि ख़ुदा देखते रह जाते हैं
कश्तियाँ डूबती हैं उस के मकीं डूबते हैं
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मैं वो टूटा हुआ तारा जिसे महफ़िल न रास आई
न पूछ मर्ग-ए-शनासाई का सबब क्या है
आरज़ू जीने की थी इम्कान जीने का न था
बे-कराँ समझा था ख़ुद को कैसे नादानों में था
मिरे चेहरे से ग़म आँखों से हैरानी न जाएगी
बिखरती टूटती शब का सितारा रख लिया मैं ने
मौज-ए-ख़याल-ए-यार ग़म-ए-आसार आई है
शरीक-ए-ग़म कोई कब मो'तबर निकलता है
एक बेचैन समुंदर है मिरे जिस्म में क़ैद
अजब पागल है दिल कार-ए-जहाँ बानी में रहता है
दिल ही गिर्दाब-ए-तमन्ना है यहीं डूबते हैं
हमारे नाम लिखी जा चुकी थी रुस्वाई