दिल में रह रह के शोर उठता है
कोई रहता है इस मकान में क्या
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कहाँ तलक तिरी यादों से तख़लिया कर लें
कोई महबूब सितमगर भी तो हो सकता है
इतना न दूर जाओ कि जीना मुहाल हो
तोड़े बग़ैर संग तराशे न जाएँगे
ख़ुद को बचाऊँ जिस्म सँभालूँ कि रूह को
बेवफ़ाई का मुझे इल्ज़ाम देता था वो शख़्स
बहुत उदास है दिल जाने माजरा क्या है
कोई शिकवा कोई गिला दे दे
दिल में तूफ़ान नहीं आँख में सैलाब नहीं
ज़िंदगी तुझ से प्यार क्या करते
बिखरते टूटते लम्हों में ऐसा लगता है
वो इतनी शिद्दतों से सोचता है