आ शिताबी सीं वगर्ना मज्लिस-ए-उश्शाक़ में
ज़ुल्म है ग़म है क़यामत है ख़राबी ऐ सनम
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Habib Jalib
Gulzar
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(449) Peoples Rate This
किया ख़ाक आतिश-ए-इश्क़ ने दिल-ए-बे-नवा-ए-'सिराज' कूँ
कभी तुम मोम हो जाते हो जब मैं गर्म होता हूँ
महरम-ए-दिल हुआ वो सहरा वा
नींद सीं खुल गईं मिरी आँखें सो देखा यार कूँ
बगूला जिन के सर पर चत्र-ए-शाही है ज़मीं मसनद
हर तरफ़ यार का तमाशा है
जिस कूँ तुझ ग़म सीं दिल-शिगाफ़ी है
बोलता हूँ जो वो बुलाता है
शोर है बस-कि तुझ मलाहत का
ऐ सनम तुझ बिरह में रोता हूँ
वस्ल के दिन शब-ए-हिज्राँ की हक़ीक़त मत पूछ