इश्क़ का नाम गरचे है मशहूर
मैं तअ'ज्जुब में हूँ कि क्या शय है
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मुवाफ़क़त करे क्यूँ मय-कशों सती ज़ाहिद
हमारे पास जानाँ आन पहुँचा
मुफ़्ती-ए-नाज़ ने दिया फ़तवा
जान ओ दिल सीं मैं गिरफ़्तार हूँ किन का उन का
जिस कूँ तुझ ग़म सीं दिल-शिगाफ़ी है
कहते हैं तिरी ज़ुल्फ़ कूँ देख अहल-ए-शरीअत
दिल मिरा साग़र-ए-शिकायत है
यार गर्म-ए-मेहरबानी हो गया
मकतब में मिरे जुनूँ के मजनूँ
उश्शाक़ का दिल दाग़ का अंदाज़ा हुआ महज़
अमल सें मय-परस्तों के तुझे क्या काम ऐ वाइ'ज़
नहीं बख़्शी है कैफ़िय्यत नसीहत ख़ुश्क ज़ाहिद की