ख़याल-ए-दोस्त न मैं याद-ए-यार में गुम हूँ

ख़याल-ए-दोस्त न मैं याद-ए-यार में गुम हूँ

ख़ुद अपनी फ़िक्र-ओ-नज़र की बहार में गुम हूँ

ख़ुशी से जब्र-ज़दा इख़्तियार में गुम हूँ

अजीब दिलकशी-ए-नागवार में गुम हूँ

ख़ुद अपनी याद-ए-फ़रामोश-कार में गुम हूँ

बहाना ये है तिरे इंतिज़ार में गुम हूँ

न मोहतसिब की ख़ुशामद न मय-कदे का तवाफ़

ख़ुदी में मस्त हूँ अपनी बहार में गुम हूँ

तिरा जमाल भी देखूँगा वक़्त आने दे

अभी तो अपने ही आईना-ज़ार में गुम हूँ

तू ही पुकार मिरा नाम ले के ऐ ग़म-ए-इश्क़

पड़ा है वक़्त ग़म-ए-रोज़गार में गुम हूँ

न शाम की है ख़बर और न सुब्ह की पहचान

'सिराज' गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार में गुम हूँ

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In Hindi By Famous Poet Siraj Lakhnavi. is written by Siraj Lakhnavi. Complete Poem in Hindi by Siraj Lakhnavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.