बरसात की छा गईं घटाएँ साक़ी
मय-ख़ाना-ब-दोश हैं हवाएँ साक़ी
हर ज़र्रा सुरूर की बना है तस्वीर
आ हम भी ज़रा पिएँ पिलाएँ साक़ी
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ये हवाएँ तो मुआफ़िक़ थीं बहुत
तस्कीन-ए-विसाल ओ रंज-ए-फ़ुर्क़त क्या है
कुछ और गुमरही-ए-दिल का राज़ क्या होगा
जाने किस की थी ख़ता याद नहीं
मेरा ख़ुदा
शादाँ हूँ कि ग़मनाक पिए जाता हूँ
क्या हुआ जो सितारे चमकते नहीं दाग़ दिल के फ़रोज़ाँ करो दोस्तो
नज़रों से ग़ुबार छट गए हैं
मिटी मिटी हुई यादों के दाग़ क्या जलते?
खुल के रोने की तमन्ना थी हमें
सुकून-ए-क़ल्ब ओ शकेब-ए-नज़र की बात करो
इल्म के थे बहुत हिजाब मगर