है फ़ितरत-ए-ज़न रमीदा आहू की तरह
छू लो तो लरज़ जाए लजा-लू की तरह
उस हुस्न के फूल को सँभल कर देखो
उड़ जाए न कहीं ये भी ख़ुश्बू की तरह
Rahat Indori
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एक शोला सा उठा था दिल में
रोज़ दोहराते थे अफ़्साना-ए-दिल
बंद हो जाए मिरी आँख अगर
उठी है जो क़दमों से वो दामन से अड़ी है
यूँ कौन सी चीज़ है जो दुनिया में नहीं
ऐ दोस्त न पूछ मुझ से क्या है
बुझी बुझी सी सितारों की रौशनी है अभी
नज़र में ढल के उभरते हैं दिल के अफ़्साने
क्या हुआ जो सितारे चमकते नहीं दाग़ दिल के फ़रोज़ाँ करो दोस्तो
अजनबी ख़त-ओ-ख़ाल
दिल को आए कि निगाहों को यक़ीं आ जाए